Tera Sath Hai Kitna Pyara -3

Views: 16 Category: Indian Biwi Ki Chudai By me.funny123 Published: August 31, 2025

आशीष ने मुझे पीछे घुमाकर मेरी ब्रा का हुक कब खोला मुझे तो पता भी नहीं चला। मेरे शरीर के ऊपरी हिस्से से ब्रा के रूप में अंतिम वस्त्र भी हट गया, मेरे दोनों अमृतकलश आशीष के हाथों में थे, आशीष उनको अपने हाथों में भरने का प्रयास करने लगे।

परन्तु शायद वो आशीष के हाथों से बढ़े थे इसीलिये आशीष के हाथों में नहीं आ रहे थे। मेरे गुलाबी निप्पल कड़े होने लगे।

अचानक आशीष ने पाला बदलते हुए मेरे बांये निप्पल को अपने मुंह में ले लिया और किसी बच्चे की तरह चूसने लगे। मैं तो जैसे होश ही खोने लगी।

आशीष मेरे दांयें निप्पल को अपने बांयें हाथ की दो ऊँगलियों के बीच में दबाकर मींजने में लगे थे जिससे तीव्र दर्द की अनुभूति हो रही थी परन्तु उस समय मुझ पर उस दर्द से ज्यादा कामवासना हावी हो रही थी और उसी वासना के कम्पन में दर्द कहीं खोने लगा, मेरी आँखें खुद-ब-खुद ही बंद होने लगी, मैं शायद इसी नैसर्गिक क्षण के लिये पिछले कुछ दिनों से इंतजार कर रही थी, मेरी आँखें पूरी तरह बंद हो चुकी थी।

मुझे महसूस हुआ कि आशीष ने मेरे निप्पलों को चाटना छोड़ दिया है अब वो अपने दोनों हाथों से मेरे निप्पलों को सहला रहे थे और उनकी जीभ मेरे नाभिस्थल का निरीक्षण कर रही थी।

यकायक उन्होंने मेरे पूरे नाभिप्रदेश को चाटना शुरू कर दिया पर यह क्याॽ
अब उनके दोनों हाथ मेरे उरोजों पर नहीं थे।

यह मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा, मैं तो चाह रही थी कि यह रात यहीं थम जाये और आशीष सारी रात मेरे उरोजों को यूँ ही सहलाते रहें और मेरा बदन यूँ ही चाटते रहें।

मेरी आँखें फिर से खुल गई तो मैंने पाया कि आशीष भी अपनी शर्ट और बनियान उतार चुके थे। ओहहहहह… तो अब समझ में आया कि जनाब के हाथ मेरे नरम नरम खरबूजों को छोड़कर कहाँ लग गये थे ! मैं आशीष की तरफ देख ही रही थी, उन्होंने भी मेरी आँखों में देखा।

हम दोनों की नजरें चार हुईं और लज्जा से मेरी निगाह झुक गई पर मेरे होंठों की मुस्कुराहट ने आशीष को मेरी मनोस्थिति समझा दी होगी।

आशीष नंगे ही फिर से मेरे ऊपर गये- नयना…’ आशीष ने मुझे पुकारा !
‘हम्‍म्‍म…’ बस यही निकल पाया मेरे गले से।
‘कैसा महसूस कर रही हो…’ आशीष ने फिर से मुझसे पूछा।

मैं तो अब जवाब देने की स्थिति में ही नहीं रही थी, मैंने बस खुद को तेजी से आशीष से नंगे बदन से चिपका लिया, मेरे बदन से निकलने वाली गर्मी खुद ही मेरी हालत बयाँ करने लगी।

आशीष के हाथ फिर से अपनी क्रिया करने लगे, पता नहीं आशीष को मेरे निप्पल इतने स्वादिष्ट लगे क्या, जो वो बार बार उनको ही चूस रहे थेॽ

परन्तु मेरा भी मन यही कह रहा था कि आशीष लगातार मेरे दोनों निप्पल पीते रहें। हालांकि अब मेरी दोनों घुंडियाँ दर्द करने लगी थीं, पूरी तरह लाल हो गई परन्तु फिर भी इससे मुझे असीम आनन्द का अनुभव हो रहा था।

मेरी आँखें अब पूरी तरह बंद हो चुकी थी, मैं खुद को नशे में महसूस कर रही थी परन्तु मेरे साथ जो भी हो रहा था मैं उसको जरूर महसूस कर पा रही थी।

पूरे बदन में मीठी-मीठी बेचैनी अनुभव हो रही थी।

मैंने अपनी बाहें फैलाकर आशीष की पीठ को जकड़ लिया, आशीष का एक हाथ अब मेरी कमर पर कैपरी के इलास्टिक के इर्द-गिर्द घूमने लगा।
हौले-हौले आशीष मेरी केपरी उतारने की कोशिश कर रहे थे। जैसे ही मुझे इनका आभास हुआ मैंने खुद ही अपने नितम्ब हल्के से ऊपर करके उनकी मदद कर दी।

आशीष तो जैसे इसी पल के इंतजार में थे, उन्होंने मेरी केपरी के साथ ही कच्छी भी निकालकर फेंक दी।

अब मैं आशीष के सामने पूर्णतया नग्न अवस्था में थी परन्तु फिर भी दिल आशीष को छोड़ने का नहीं हो रहा था।
आशीष अब खुलकर मेरे बदन से खेलने लगे, वो मेरे पूरे बदन पर अपने होंठों के निशान बना रहे थे, शायद मेरे कामुक बदन को कोई एक हिस्सा भी ऐसा नहीं बचा था जिस को आशीष ने अपने होंठों से स्पर्श ना किया हो।

आशीष अब धीरे धीरे नीचे की तरफ बढ़ने लगे, मेरी नाभि चाटने के बाद आशीष मेरे पेड़ू को चाटने लगे।

आहहहह्…इस्‍स्… स्‍स्‍स्‍स…स‍… हम्‍म्‍म्‍म‍… उफ्फ… यह क्या कर दिया आशीष ने…

मुझ पर अब कामुकता पूरी तरह हावी होने लगी, मुझे अजीब तरह की गुदगुदी हो रही थी, मैं इस समय खुद के काबू में नहीं थी, मुझे बहुत अजीब सा महसूस हो होने लगा, ऐसी अनुभूति जीवन में पहले कभी नहीं हुई थी पर यह जो भी हो रहा था इतना सुखदायक था कि मैं उसे एक पल के लिये भी रोकना नहीं चाह रही थी।

मेरी सिसकारियाँ लगातार तेज होने लगी थी, तभी कुछ ऐसा हुए जिसने मेरी जान ही निकाल दी।

आशीष ने हौले ने नीचे होकर मेरी दोनों टांगों के बीच की दरार पर अपनी सुलगती हुई जीभ रख दी।
‘सीईईईई… ईईईई…’ मेरी जान ही निकल गई, अब मैं ऐसे तड़पने लगी जैसे जल बिन मछली।

ऊई माँऽऽऽ… अऽऽऽहऽऽ… यह क्या कर डाला आशीष नेॽ मेरा पूरा बदन एक पल में ही पसीने पसीने हो गया, थर्र-थर्र कांपने लगी थी मैं।
आशीष हौले-हौले उस दरार को ऊपर से नीचे तक चाट रहे थे।

उफ़्फ़… मुझसे अपनी तड़प अब बर्दाश्त नहीं हो रही थी, बिस्तर की चादर को मुट्ठी में भींचकर मैं खुद को नियंत्रित करने का असफल कोशिश करने लगी परन्तु ऐसा करने पर भी जब मैं खुद को नियंत्रित नहीं कर पाई तो आशीष को अपनी टांगों से दूर धकेलने की कोशिश की।

आशीष शायद मेरी स्थिति को समझ गये। खुद ही अब उन्होंने मेरी मक्खन जैसी योनि का मोह त्याग कर नीचे का रुख कर लिया।

अब आशीष मेरी जांघों को चाटते-चाटते नीचे पैरों की तरफ बढ़ गये, ऐसा महसूस हुआ जैसे मेरी योनि में कोई फव्वारा छूटा हो, मेरी योनि में से सफेद रंग का गाढ़ा-गाढ़ा स्राव निकलकर बाहर आने लगा।

इस स्राव के निकलते ही मुझे कुछ सुकून महसूस हुआ, अब मेरी तड़प भी कम हो गई थी, मैं होश में आने लगी परन्तु मेरे पूरे शरीर में मीठा-मीठा दर्द हो रहा था, मुझे ऐसा महसूस होने लगा जैसे मेरा पेशाब यहीं निकल जायेगा।

मैं तुरन्त आशीष से खुद को छुड़ाकर कमरे से सटे टायलेट की तरफ दौड़ी। टायलेट की सीट पर बैठते ही बिना जोर लगाये मेरी योनि से श्वे‍त पदार्थ मिश्रित स्राव बड़ी मात्रा में निकलने लगा।

परन्तु मूत्र विसर्जन के बाद मिलने वाली संतुष्टि भी कम सुखदायी नहीं थी।

अपनी योनि को अच्छी तरह धोने के बाद मैं वापस अपने कमरे में आई तो देखा आशीष अपना नाईट सूट पहनकर टीवी देखने लगे।

मैं भी अब पहले से बहुत अच्छा अनुभव कर रही थी, आते ही आशीष की बगल में लेटकर टीवी देखने लगी। पता ही नहीं लगा कि कब मुझे नींद आ गई।

कहानी जारी रहेगी।
me.funny123@rediffmail.com

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