अभी तक आपने पढ़ा…
अब शायद उनमें फिर से जोश चढ़ने लगा था.. क्योंकि अब वो भी अपनी कमर हिलाने लगी थीं.. पर मैंने चैक करने लिए उसके चूचे फिर से दबाने चालू किए और इस बार उन्होंने मना नहीं किया।
जबकि पहले वहाँ हाथ भी नहीं रखने दे रही थीं.. पर मैं अब फिर से भरपूर तरीके से उसके मम्मे मसल रहा था।
तभी अचानक वो फिर से झड़ गईं.. तो फिर मैंने उसे अपने नीचे लिटाया और फुल स्ट्रोक के साथ चोदने लगा।
फिर कुछ ही धक्कों के बाद ही मेरी भी आँखों के सामने अंधेरा सा छा गया और माया की बांहों में खोते हुए उसके सीने से अपने सर को टिका दिया।अब माया मेरी पीठ सहलाते हुए मेरे माथे को चूमे जा रही थी और जहाँ कुछ देर पहले ‘अह्ह्ह ह्ह्ह्ह्ह.. श्ह्ह्ह्ही.. ईईएऐ.. ऊऊओह.. फक्च.. फ्छ्झ.. पुच.. पुक..’ की आवाजें आ रही थीं.. वहीं अब इतनी शांति पसर चुकी थी.. कि सुई भी गिरे तो उसके खनकने आवाज़ सुनी जा सकती थी।
अब आगे..
फिर जब कुछ देर बाद मेरी साँसें थमी तो मैं उनके ऊपर से हटा और अपना लौड़ा साफ़ करने के लिए उनकी पैन्टी खोजने लगा.. तभी मेरी नज़र उनकी चूत के नीचे की ओर चादर पर पड़ी तो मैंने पाया कि चादर इतना ज्यादा भीगी हुई थी कि लग ही नहीं रहा था कि यह चूत रस से भीगी है। मुझे लगा कि शायद इन्होंने मूत ही दिया है.. तो मैं बिना बोले उठा और अटैच्ड वाशरूम में जाकर अपने लौड़े को साफ़ करने लगा।
क्योंकि मेरे मन में बहुत अजीब सी फीलिंग आ रही थी कि क्या वाकयी में माया को होश न रहा था और उसने वहीं सुसू कर दी..
खैर.. मैंने अच्छे से अपने औजार नुमा लिंग को धोकर चमकाया और वापस बिस्तर की ओर चल दिया।
जैसे ही मैं बिस्तर के पास पहुँचा.. तो उन्होंने मेरे से पूछा- क्या हुआ.. कहाँ गए थे?
तो मैंने उन्हें बोला- लौड़ा साफ़ करने गया था।
वो बोली- यहीं कपड़े से पोंछ लेते न.. जाने की क्या जरुरत थी.. तू तो हमेशा मेरी पैन्टी से ही पोंछता है।
तो मैं बोला- हाँ पर आज आपने कुछ ऐसा कर दिया था कि मुझे न चाहते हुए भी जाना पड़ा।
उन्होंने पूछा- क्यों.. क्या हो गया था?
तो मुझसे रहा नहीं गया.. मुझे बताना पड़ा, जबकि मैं नहीं चाहता था कि उन्हें बताऊँ कि आज उन्होंने क्या किया है।
पर मुझे न चाहकर भी उनके बार-बार पूछने पर बताना पड़ा कि मैं जब उठा तो चूत के नीचे इतना गीला पाया कि जैसे अपने सुसू ही कर दी हो.. इसलिए साफ़ करने गया था।
तो उन्होंने बड़े ही प्यार से मेरे मुरझाए हुए लौड़े को सहलाते हुए बोला- ये सुसू नहीं.. बल्कि इस मथानी का कमाल है.. देखो कैसे इसने कैसे मथा है.. अभी तक बहे जा रही है।
जब मैंने ध्यान दिया तो वाकयी में चूत से बूँद-बूँद करके रस टपक रहा था।
मैंने हैरानी से देखते हुए उनसे पूछा- ऐसा क्या हो गया आज.. जो इतना बह रही है।
तो वो बोली- मैं नहीं बता सकती कि मुझे आज क्या हो गया है?
पर मेरे जोर देने पर उन्होंने बोला- यार आज न तूने मुझे जबरदस्त चुदाई का मज़ा तो दिया ही है और जिस तरह तुमने रूचि और विनोद को समझाया था न.. ऐसा लग रहा था जैसे तुम्हीं उन दोनों के बाप और मेरे पति हो। आज तो तूने मुझे पति वाला सुख भी दिया है.. जिससे मेरा रोम-रोम तुम्हारा हो गया और जिंदगी में पहली बार आज मुझे इतना अधिक स्खलन हुआ है। इससे पहले ऐसा कभी न हुआ था। मैं चाह कर भी खुद को रोक नहीं पा रही हूँ.. बस बहता ही जा रहा है। मैंने बहुत कोशिश की.. पर नहीं रोक पाई..
उनकी बात सुनकर मुझे भी उन पर प्यार आ गया और मैं उनके बगल में कुछ इस तरह से लेटा कि मेरा मुँह उनके गले के पास था।
मेरा दाहिना हाथ उनकी पैन्टी पकड़े हुए उनकी जांघ के पास था और बायां हाथ उनके सर के पास था, उनके दोनों हाथ मेरी पीठ पर थे और उनका मुँह मेरे गले के पास था। मेरा सोया हुआ लण्ड उनकी जांघों से सटा हुआ था।
अब इतना जीवंत चित्रांकन कर दिया है ताकि आप लोग ज्यादा से ज्यादा इसका मज़ा ले सकें।
खैर अब वो मेरे पीठ पर हाथ फेरते हुए मुझसे बोल रही थी- तुम्हारा ये गर्म एहसास मुझे बहुत पागल कर देता है.. मेरा खुद पर कोई कंट्रोल नहीं रहता और जब तुम मुझे इतना करीब से प्यार देते हो.. तो मेरा दिल करता है कि मैं तुम्हारे ही जिस्म में समा जाऊँ।
मैं उनके रस को उनकी जांघों से और चूत से पोंछ रहा था और बीच-बीच में उनके चूत के दाने को रगड़ भी देता था जिससे उनके बदन में ‘अह्ह्ह.. ह्ह्ह्ह..’ के साथ सिहरन सी दौड़ जाती.. जिससे उनकी अवस्था का साफ़ पता चल रहा था और वो मेरे गले को भी चूम भी लेती.. जिससे मेरे लौड़े में फिर से तनाव का बुलावा सा महसूस होने लगा था।
उनके बोलने से जो मेरी गर्दन पर उनकी गर्म साँसें पड़ रही थीं.. उससे मुझे भी सिहरन सी होने लगी थी।
मैं भी बीच-बीच में उनके सर को सहलाते हुए उनके गले को चूमते और चाटते हुए उनके कान के पास और कान के पास चूम लेता था।
मैं कभी कान के नीचे की ओर हल्का-हल्का धीरे से काट भी लेता था.. तो वो मेरी इस हरकत से मचल सा जाती थीं। जिससे उनकी टाँगे फड़कने लगतीं और वे अपने चूचों को मेरी छाती से रगड़ने लगतीं.. जो कि अब बहुत ही कठोर सी हो गई थीं।
उसके चूचों के निप्पल तो ऐसे चुभ रहे थे.. जैसे कोई रबड़ की गोली.. मेरे और उसके बदन के बीच में अटक सी गई हो।
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यह फीलिंग मुझे इतना मस्त किए जा रही थी कि अब मैं भी कुछ समझ नहीं पा रहा था। मुझे बस यही लग रहा था कि ये ऐसे ही चलता रहे।
कभी-कभी ज्यादा उत्तेज़ना मैं अपनी छाती से उसके चूचों को इतनी तेज़ से मसल देता कि उसके मुँह ‘अह्हह्ह.. श्ह्हह्हीईई..’ की आवाज़ फूट पड़ती थी।
इसी तरह कुछ देर चलता रहा और अचानक से माया दोबारा जोश में आ गई और अपने बाएं हाथ से मेरी पीठ को सहलाते हुए मेरे लौड़े को अपने दायें हाथ से सहलाते हुए बोली- जान तुम कितने अच्छे हो.. काश ये समा यही थम जाए.. और हम दोनों इसी तरह एक-दूसरे की बाँहों में रहकर प्यार करते रहें।
मैं बोला- काश.. ऐसा हो पाता.. तो ये जरूर होता.. पर सोचो तुम अगर रूचि की बेटी होती.. तो मैं तुमसे शादी करके हमेशा के लिए अपना बना लेता.. पर क्या तेरी जगह रूचि होती.. तो मेरे ये सब साथ करती?
तो वो बोली- पता नहीं..
तो मैं हँसते हुए बोला- पर सोचो अगर वो करने देती.. तो कितना मज़ा आता.. वो भी बहुत मस्त है।
ये बोलते हुए मैंने उनके गालों को चूम लिया..
उन्होंने बोला- अच्छा तो तुझे मेरी बेटी पसंद है?
तो मैं बोला- तुम पसंद की बात कर रही हो यार… वो तो मुझे बहुत ही ज्यादा अच्छी लगती है।
तो वो बोली- देखो अगर तुम उससे शादी करो.. तो ही उस पर नज़र रखना.. वरना नहीं..
मैं बोला- तुम परेशान मत हो.. जो कुछ भी होगा.. तुम्हें पहले बताऊंगा.. पर अभी जब कुछ ऐसा है ही नहीं.. तो हम क्यों ये फालतू की बात करें।
इस पर वो ‘हम्म्म..’ बोलते हुए.. वो भी मेरी ही तरह मेरे गले.. गाल और कानों को चूमने लगी और मेरे लौड़े को हिलाकर उसकी मालिश सी करने लगी.. जो कि रूचि की बात सोच कर पूरे आकार में आ चुका था।
अब उसे क्या पता.. अगले दिन रूचि ही इसके निशाने पर है। मैंने उसकी सोच छोड़कर.. अब जो हो रहा था.. उस पर सोचने लगा। अब मैं इतना मस्ती में डूब चुका था कि मैं भी नहीं चाह रहा था कि अब ये खेल रुके।
मैं भी पूरी गर्मजोशी के साथ उससे लिपट कर उसे अपने प्यार का एहसास देने लगा।
माया इतनी अदा से मेरे लौड़े को मसल रही थी कि पूछो ही नहीं.. वो अपनी उँगलियों से अपने रस को लेती और मेरे लण्ड पर रस मल देती।
जब मेरा पूरा लौड़ा उसके रस से सन गया. तो वो बहुत ही हल्के हाथों से उसकी चमड़ी को ऊपर-नीचे करते हुए मसाज़ देने लगी। बीच-बीच में वो मेरे लौड़े की चमड़ी को पूरा खोल कर सुपाड़े को सहलाती.. तो कभी उसके टांके के पास सहलाती.. जिससे मेरे पूरे शरीर में हलचल के साथ-साथ मुँह से ‘श्ह्ह्ह्ह्.. ह्ह्ह्हीईई.. अह्ह्ह्ह..’ निकल जाती।
वो मुझसे बोलती- तुम्हें अच्छा लग रहा है न..
मैं ‘हाँ’ बोल कर आँखें बंद करके इस लम्हे का मज़ा लेने लगता।
तभी वो बोली- क्या तुम चाहते हो कि मैं इसी तरह इसे मसाज देते हुए इसे मुँह से भी चूसूँ?
मैंने भी उन्हें चूमना चालू किया और चूमते-चूमते मैं उनके कान के पास आया और फुसफुसा कर बोला- चाहता तो मैं भी तुम्हारे रस को पीना चाहता हूँ।
तो वो ख़ुशी से खिलखिलाकर हंस दी और बोली- मुझे पता था.. तू यही बोलेगा..
बस फिर हम दोनों 69 की अवस्था में आ गए और मुख-मैथुन का आनन्द लेने लगे। कुछ ही समय में मेरे लण्ड पर तनाव आने लगा और माया की फ़ुद्दी ने काम-रस की तीव्र धार छोड़ दी।
पर उसने मेरे लौड़े पर अपनी पकड़ बनाए रखी.. फिर मैंने भी वैसा ही किया।
अबकी बार तो मैंने चाटने के साथ-साथ उंगली भी करना चालू कर दी थी। उधर माया मेरे लौड़े को मज़े से लॉलीपॉप की तरह चूस रही थी और इधर मैं उसके चूत के दाने को जुबान से कुरेद रहा था। इसके साथ ही मैं अपनी उंगली को उसकी चूत में डाल कर उसकी चूत को मसल रहा था.. जिसे माया बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी।
इसके पहले कि वो दोबारा छूटती.. वो ‘उह्ह्ह्ह.. ह्ह्ह्ह्ह.. शीईईईई..’ के साथ ऊपर से हटी और अपनी चूत को पैन्टी से पोंछते हुए बोली- तूने तो आज मौसम ख़राब कर दिया.. सब कीचड़ ही कीचड़ करके छोड़ा है।
यह कहते हुए उसने मेरे लौड़े को मुँह में भर लिया.. इतना अन्दर.. जितना अन्दर तक वो एक बार में ले सकती थी।
अब वो बार-बार लौड़े को बाहर निकालते हुए और लौड़े की चमक को चूमते हुए लौड़े से मुखातिब होकर बोली- चल बाबू.. अब तैयार हो जा.. तेरी मुन्नी तुझे जोरों से याद कर रही है।
कहते हुए उठी और अपनी दोनों टांगों को मेरी कमर के दोनों ओर रखा और लण्ड को एक ही बार में अपनी चूत में ले लिया.. जिसके मिलन के समय ‘पुच्च’ की आवाज़ आई।
उसकी चूत में इतना गीलापन था कि लौड़ा भी आराम से बिना किसी रगड़ के अन्दर-बाहर आ-जा रहा था।
अब अवस्था ऐसी थी कि वो मेरे पैर के घुटने पकड़ कर उछल-कूद कर रही थी.. जैसे कि वो किसी रेस के घोड़े की सवारी कर रही हो।
मेरे हाथ उसकी पीठ को सहला रहे थे। कुछ समय बाद माया इतने जोश में आ गई.. कि मैं तो डर ही गया था.. कि कहीं ये तेज़ स्वर से चिल्लाने न लगे।
वो तो उसे अपने पर काबू करना आता था.. नहीं तो अब तक तो बबाल हो जाता।
अब माया इतनी तेज़ गति से उछाल मार रही थी कि मेरा अंग-अंग भी बिस्तर के साथ हिल रहा था ‘अह्ह्ह ह्ह्ह्ह.. आआ.. आआअह.. हाआआ.. र..राहुल.. और तेज़ से.. जोर लगा… मेरा बस होने वाला है..’
कहते हुए माया ने मेरे हाथों को पकड़ा और अपने चूचों पर रख दिए।
जिसे मैंने मसलने के साथ साथ अच्छे से दबाते हुए नीचे से धक्के की रफ़्तार बढ़ा दी थी।
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धक्कों की आवाज़ से जो ‘अह्ह्ह.. ह्ह्ह्ह ह्ह्ह हाआआ आआ.. उउउ.. उउम्म्म..’ के स्वर निकल रहे थे.. वो भी अब टूट-टूटकर आने लगे थे। जिससे यह अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि माया कभी भी पानी छोड़ सकती है।
ठीक वैसा ही हुआ.. माया के कमर की गति एक लम्बे ‘आआआ.. आआआ.. आह्ह्ह ह्ह उउम्म्म्म..’ के साथ ठंडी पड़ गई।
फिर मैंने भी बिना वक़्त गंवाए उन्हें थोड़ा ऊपर उठाया और उनको घोड़ी की अवस्था में लेकर उनके पीछे से जाकर उनकी चूत में लौड़ा ठोकने लगा।
कुछ ही देर में उनकी चूत में और उनके अंतर्मन में फिर से चुदास की तरंगें दौड़ने लगीं.. जिसे मैंने भाँपते हुए अपने लौड़े को उनकी चूत से निकाला और बीच वाली उंगली से उनकी चूत का रस लेकर उनकी गाण्ड को चिकना करने लगा।
जिससे वो भी मचलते हुए बोली- राहुल तूने मेरी चूत तो बेहाल कर ही दी.. अब क्यों गाण्ड को दुखाने की सोच रहे हो?
तो मैंने बोला- क्या सारे मज़े तुम्हीं लेना जानती हो.. मुझे भी तो मौका मिलना चाहिए न..
वो बोली- मैंने मना कब किया.. चल अब जल्दी से अपने मन की कर ले..
फिर मैंने उनकी गाण्ड चौड़ाई और ‘घप्प’ के साथ पूरा लौड़ा आराम से घुसेड़ दिया.. जिससे उनके मुख से दर्द भरी ‘आह्ह्ह..’ निकल गई।
मैंने उनके दर्द की परवाह किए बगैर उनकी गाण्ड को ठोकना चालू रखा।
कभी-कभी इतना तेज़ शॉट मार देता था.. कि मेरा लौड़ा उनकी गाण्ड की जड़ तक पहुँच जाता और उनके मुख से ‘आअह्ह.. ऊऊह्ह ह्हह..’ के स्वर स्वतः ही निकल जाते।
जिससे मेरा जोश दुगना हो जाता।
तभी मेरे दिमाग में आया.. क्यों न अपनी उंगली भी इनकी चूत में डाल कर मज़े को दोगुना किया जाए।
तो मैंने वैसा ही किया और दोनों सागर रूपी तरंगों की तरह लहराते हुए मज़े से एक-दूसरे को मज़ा देते हुए पसीने-पसीने हो गए।
फिर एक लंबी ‘आहह्ह्ह्ह..’ के साथ मैं उनकी गाण्ड में ही झड़ गया और साथ मेरी उंगली ने भी उनके चूत का रस बहा दिया।
अब हम इतना थक चुके थे कि उठने का बिलकुल भी मन न था। थकान के कारण या.. ये कहो अच्छे और सुखद सम्भोग के कारण.. आँखें खुलने का नाम ही न ले रही थीं।
फिर मैं उनके बगल में लेट गया और माया भी उसी अवस्था में मेरी टांगों पर टाँगें चढ़ाकर और सीने पर सर रखकर सो गई।
उसके बालों की खुश्बू से मदहोश होते हुए मुझे भी कब नींद आ गई.. पता ही न चला।
अब आगे के भाग के लिए.. ज्यादा नहीं बस थोड़ा सा इंतज़ार करें.. जल्द ही मैं नए भाग के साथ हाजिर होऊँगा, अब बिना लौड़ा शांत किए आगे नहीं लिख सकता हूँ।
मैं आशा करता हूँ कि लौड़े वाले भी बिना शांत हुए अब कुछ और नहीं कर पाएंगे और चूत वालियाँ भी बिना ऊँगली किए रह ही नहीं सकतीं।
तो अब आप लोग भी अपने शरीर की संतुष्टि के लिए खुद कुछ करें और शांत मन से आगे के भाग के लिए इंतज़ार करें। अपने लौड़े और चूतों को थाम कर कहानी के अगले भाग का इंतज़ार कीजिएगा.. तब तक के लिए आप सभी को राहुल की ओर से गीला अभिनन्दन।
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