Chut Aur Lund Ka Ek Hi Rista - 6

Views: 48 Category: Family Sex By Garimasexy Published: July 03, 2025

अब आगे फादर डॉटर सेक्स कहानी:

अगले दिन की करीब 7.30 बजे नींद खुली तो मैं हाथ मुंह धोकर और कपड़े बदल कर नीचे आई तो देखा कि मम्मी-पापा और नानी चाय पी रहे थे।

मम्मी और नानी साथ बैठे थे जबकि पापा सोफ़े पर बैठ कर पेपर भी पढ़ रहे थे।

उन्होंने मुझे नहीं देखा मगर मम्मी ने देखा तो बोली- चाय बनी हुई है, जाकर ले लो।

पापा बिना मेरी या देखे पेपर पढ़ते रहे।

मैं रसोई में गई और अपनी चाय गर्म करने लगी।

मगर आज मैंने महसूस किया कि मुझे आज पापा से के सामने जाने में कोई झिझक नहीं हो रही थी।
बल्कि चाय लेकर बिना हिचकिचाए मैं भी सोफे पर ही जाकर पापा के पास बैठ गई और चाय पीने लगी।

कुछ देर तो पापा और मैं एक-दूसरे से कुछ नहीं बोले.

मगर थोड़ी देर बाद पापा ने खुद ही बात शुरू की और बोले- आज भी कॉलेज नहीं जाना है क्या बेटा?
मैंने कहा- नहीं पापा, ज्योति बाहर गई है और मैं कॉलेज में अकेली बोर हो जाती हूं।

अभी पापा बोले- कोई बात नहीं, घर पर ही पढ़ लिया करो!
मुझे लगा कि पापा भी अब एकदम नॉर्मल होने की कोशिश कर रहे हैं।

पहले हम दोनों थोड़ा बहुत एक-दूसरे से नज़रें बचाते थे या फिर निगाह मिलाने से बचते थे.
मगर अब ऐसा कुछ नहीं था, अब सब कुछ खुल कर ही हो रहा था सिवाय इसके कि पापा और मैं इस बारे में मुझसे बात नहीं करते थे … और जो कुछ भी होता था वह रात में होता था।

रात में भी हम एक-दूसरे से निगाह मिलाए बिना सब करते थे।

मतलब कि पापा जब मेरे साथ कुछ करते थे तो मैं आंख बंद करती थी और जब मैं पापा के साथ करती थी तो वे आंख बंद किये रहते थे।

लेकिन मैं अब सब कुछ खुलकर करना चाह रही थी.

बस सवाल ये था कि शुरुआत कैसे हो और कौन शुरू करे!

खैर … पापा 9.30 बजे तक ऑफिस चले गये.
मैं भी नाश्ता कर के अपने कमरे में आ गई।

दिन भर मैं सोचती रही कि कैसे खुलकर मजा लेने की शुरुआत की जाए.
दरअसल अब खुलकर मजा लेने में कोई दिक्कत भी नहीं थी.

और शायद पापा भी अब यही चाहते थे.
क्योंकि कल रात में जब पापा दूसरी बार झड़ने वाले थे तो वे मेरे सिर को अपने हाथ से अपने लंड पर दबा रहे थे और उनके मुंह से सिसकारी की आवाज भी निकली थी।

मतलब कि अब वे भी खुलकर मजे लेना चाह रहे हैं.

मैं सोचने लगी कि जब पापा को पटाने का सबसे मुश्किल काम कर ही चुकी हूं.
तो अब ये भी कोई बड़ी मुश्किल नहीं है।
बस कोई प्लान दिमाग में नहीं आ रहा था.

लेकिन कोई प्लान के बारे में मैं सोच रही थी और आखिरकार दिमाग में एक प्लान आ ही गया।
मैंने सोच लिया कि इस प्लान को आज ही मौका दूंगी … मैं ज्यादा दिन इंतजार नहीं करूंगी।
क्योंकि जब तक नानी हैं तब तक मम्मी का ध्यान उनकी तरफ ज्यादा रहेगा, हमारे और पापा मेरे पास पूरा टाइम रहेगा अपना काम करने का!

अब मैं शाम होने का इंतजार करने लगी।

शाम को पापा ऑफिस से करीब 6 बजे तक आ गए और रोज की तरह चाय वगैरह पी कर टीवी देखने बैठ गए।

बाहर छोटा सा लॉन था, मम्मी और नानी शाम में अक्सर वही बैठ जाती थी.
मैं भी वही उनके साथ बैठ जाती थी.

इधर-उधर की बात करते-करते करीब 7 बज गए.
मम्मी और नानी दोनों अंदर आ गई और मम्मी रात के खाने की तैयारी करने लगी।

मैं ऊपर अपने कमरे में आकर पढ़ने लगी और 8 बजे का इंतजार करने लगी।

जैसे-जैसे टाइम पास आ रहा था … मेरे दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी।
हालांकि मुझे डर नहीं लग रहा था बस चूंकि अभी तक तो सब कुछ नींद का बहाना कर के हो रहा था.

मगर आज जो मेरा प्लान था उसमें ना तो आंख बंद करने का नाटक करना था और ना ही नींद में सोने का नाटक … जो कुछ भी होना था, वह खुलकर होना था।
इसलिए थोड़ी सी घबराहट और एक्साइटमेंट हो रही थी।

खैर … 8.30 बजने वाले थे और मैंने तैयारी शुरू कर दी।

मैंने घुटनों तक की स्कर्ट पहन ली जो मैं अक्सर घर में पहनती थी और ऊपर टी-शर्ट डाल लिया।
मैंने अंदर पैंटी और ब्रा दोनों नहीं पहनी।

जब 8.30 बज गए तो स्कूटी की चाभी उठाई और कमरे से निकल कर नीचे आ गई।

नीचे मम्मी रसोई में थीं और पापा अभी भी टीवी देख रहे थे.

पापा रोज की तरह लुंगी और कुर्ता पहनने हुए थे.

मैंने नीचे जाते ही मम्मी से कहा- मम्मी, मुझे एक ज़रूरी किताब लेने अभी मार्केट जाना है।

इस पर मम्मी हल्का सा नाराज़ होते हुए बोली- इस समय कौन सी किताब की ज़रूरत पड़ गई तुम्हें?
मैंने कहा- अरे मम्मी, अभी फोन आया है एक दोस्त का कि कल एक प्रैक्टिकल होना है कॉलेज में! हमें जाना जरूरी है और मेरे पास उसकी किताब नहीं है। तो वह मुझे अभी लेनी होगी. अभी 8.30 बज रहे हैं, दुकानें खुली होंगी।

मम्मी बोली- ठीक है, अकेली मत जाओ, पापा को भी साथ लेती जाओ।

मैं तो बस यही चाह रही थी कि मम्मी खुद बोलें कि पापा के साथ जाओ.

उधर पापा भी हमारी बातें सुन रहे थे।

मैं बोली- ठीक है।
और ये कहकर रसोई से बाहर निकाल कर स्कूटी की चाबी पापा को देते हुए उनसे बोली- पापा, मेरे साथ मार्केट चलिये … एक बुक लेनी है।

पापा बोले- ठीक है, चलो!
यह कह कर वे अपने कमरे की तरफ जाने लगे।

मैंने कहा- कहां जा रहे हैं?
तो वे बोले- अरे कपड़े चेंज कर लूं!
मैंने कहा- जितनी देर में आप कपड़े चेंज करेंगे, उतनी देर दुकान बंद हो जायेगी। ऐसे ही चलिये, रात में कौन देख रहा है।

दरअसल मेरा प्लान ही था पापा को लुंगी में ले चलने का!

पापा बोले- ठीक है, चलो।

फिर हम दोनों बाहर आ गये।

मैंने पापा को स्कूटी की चाभी दी।
स्कूटी स्टार्ट होने पर मैं पीछे बैठ गई, मैं उनके पीछे ऐसे बैठी कि मेरी चूची उनकी पीठ से चिपक गई।

कॉलोनी की सड़क में थोड़े गड्ढे थे तो उनमें जैसे ही स्कूटी जाती तो मैं थोड़ा जानबूझकर झटके के साथ पापा की पीठ पर अपनी चूचियों को पूरा चिपका देती और अपना हाथ उनकी जाँघ पर रख देती थी।

खैर … जैसे ही हम कॉलोनी से निकल कर मेन रोड पर आये तो मैंने पापा से कहा- पापा, मैं स्कूटी चलाऊँ आप पीछे बैठ जाइये।
पापा पहले थोड़ी हिचकिचायें और बोले- अरे, मैं चल रहा हूँ ना!

मुझे लगा कि वे मेरी चूचियां जो उनकी पीठ से चिपकी थी उनका मजा नहीं छोड़ना चाह रहे थे.
मगर मेरा प्लान कुछ और था।

मैंने कहा- प्लीज पापा मैं चलाऊंगी।
पापा फिर बोले- अरे देर हो रही है, स्पीड में चलकर ले चलूंगा ताकि दुकान बंद होने से पहले पहुंच जाएं।

शायद पापा को अभी भी लग रहा था कि मैं किताब लेने के लिए ही आई हूं.

मगर मैं ज़िद करने लगी।

इस पर पापा बोले- ठीक है, लो तुम्ही चलाओ।
ये कह कर वे स्कूटी से उतरने लगे.

उससे पहले ही मैं तेजी से स्कूटी से उतर गई और उनसे बोली आप मत उतरिए, पीछे खिसक जाइए मैं आगे बैठ जाऊंगी।
वे थोड़े हिचकिचा रहे थे, बोले- नहीं, तुम बैठी रहो, मैं उतर कर पीछे आ जाता हूं।

मगर तब तक मैं उतर चुकी थी और आगे आते हुए बोली- आप खिसक जाएं पीछे!
पता नहीं क्यों … पापा थोड़े नर्वस हो रहे थे पीछे खिसकने में!
मगर मेरे जिद करने पर वे स्कूटी पर बैठे बैठे ही पीछे खिसक गए।

मैं आगे आकर स्कूटी की सीट पर जानबूझ कर अपने कमर को ऊपर उठाए हुए थोड़े पीछे खिसक कर ऐसे बैठी कि मेरी गांड पापा के लंड से चिपक जाए।

मगर मैं जैसे ही इस तरह बैठी तो मैं सारा माजरा तुरंत समझ गई कि पापा क्यों पीछे बैठने में हिचकिचा रहे थे।

दरअसल शायद पापा लुंगी के नीचे अंडरवियर नहीं पहने थे और मेरी चूचियों को अपनी पीठ पर चिपकाने से वे उत्तेजित हो गई थी और उनका लंड खड़ा हो गया था।
क्योंकि जैसे ही मैं अपनी गांड उठाकर पीछे होकर बैठी तो उनका खड़ा लंड मेरी गांड में छूने लगा था।

मैंने सोचा कि चलो मेरा थोड़ा काम आसान हो गया।
मैं स्कूटी चलाने लगी।

पापा का लंड मेरी गांड पर चिपक रहा था और मैं भी जानबूझ कर अपनी गांड को उनके लंड पर और जोर से दबा रही थी.
मैंने स्कूटी की स्पीड एकदम धीमी कर रखी थी और आराम से मजे लेकर चल रही थी।

रात की ठंडी हवा में अपने पापा के लंड को गांड पर महसूस करते हुए स्कूटी चलाने में अलग ही मजा आ रहा था।
मेरी गांड से सटकर पापा का लंड शायद और भी खड़ा हो गया था क्योंकि मुझे पहले से ज्यादा उसकी चुभन महसूस हो रही थी।

एक जगह रास्ते में स्पीड ब्रेकर आया तो मैंने जल्दी चलते हुए हल्का सा अपनी गांड को सीट से ऊपर उठाया और फिर धीरे से अपने कमर को पीछे कर ऐसी बैठी कि पापा का लंड अब मेरी गांड के नीचे आधा दबा हुआ था.
हल्का सा भी झटका लगने पर मैं अपनी गांड को उनके लंड पर रगड़ देती थी।

रास्ते में रेलवे ओवरब्रिज के ऊपर चढ़ने के बजाये मैं उसके नीचे से स्कूटी ले जाने लगी।
तो पापा चौंकते हुए बोले- अरे ओवरब्रिज से क्यों नहीं चल रही हो बेटा. नीचे तो अंधेरा होगा और हो सकता है ट्रेन का टाइम होने से गेट भी बंद हो।

दरअसल मार्केट हमारी कॉलोनी से थोड़ी दूरी पर था बीच में एक रेलवे का ओवरब्रिज भी था जिसके पार करने के बाद कुछ दूर पर मार्केट शुरू होती थी. ओवरब्रिज के नीचे से मुश्किल से कोई इक्का-दुक्का ही आता जाता था। वही रात में क्योंकि अंधेरा बहुत होता था इसलिए वैसे भी कोई नहीं जाता था।

मैं थोड़ा हंसती हुई बोली- तो क्या हुआ पापा, थोड़ा इंतजार कर लेंगे. कौन सी जल्दी है।

असल में मैं पापा को एहसास दिलाना चाह रही थी कि मैं बुक लेने नहीं कुछ और करने (फादर डॉटर सेक्स) आई हूं.

पापा बोले- और शॉप बंद हो गई तो?
मैं बोली- अरे मेरा तो स्कूटी से घूमने का मन था तो मैं चली आई. कौन सा मुझे कोई किताब लेनी है।

पापा बोले- अरे यार, तो पहले क्यों नहीं बोला? मैं टेंशन में था कि कहीं शॉप बन्द न हो जाए।
इस पर मैं थोड़ा कमेंट करते हुए बोली- हां टेंशन तो मैं महसूस कर रही हूं।

अब मैंने थोड़ा मजे लेना शुरू कर दिया था।
मेरा इशारा उनके खड़े लंड की तरफ था.

पापा समझ गए कि मेरा इशारा किधर है।
तो वे भी थोड़ा मजे लेते हुए बोले- अरे तो तुम्हें तो दे रही हो वह टेंशन!

इस पर हम दोनों थोड़ा हंस दिए।

अब मैं और पापा धीरे-धीरे खुलने लगे थे।

स्कूटी लेकर जैसे ही मैं ओवरब्रिज के नीचे रेलवे क्रॉसिंग के पास पहुंची तो देखा कि गेट बंद था।
शायद कोई ट्रेन आने वाली थी।
मैं तो बस यही चाह रही थी।

मैंने कहा- ओह … गेट तो बंद है.
पापा बोले- कोई नहीं, थोड़ा इंतज़ार कर लेते हैं.

फिर थोड़ा कमेंट कर हंसते हुए बोले- वैसे भी कौन सी जल्दी है … कोई किताब तो लेनी नहीं है।
मैं बस हल्का सा मुस्कुरा कर चुप रही।

प्रिय पाठको, मेरी फादर डॉटर सेक्स कहानी आप को कैसी लग रही है, आप मुझे ज़रूर बतायें।

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