Xxx सिस्टर लव स्टोरी में मैं अपने चचेरे भाई को गे बनने से रोकने के लिए उसको पटाकर उससे चुद गयी. अब वह लड़की चोद हो गया. वह मुझे चोदने की फ़िराक में रहने लगा.
कहानी के तीसरे भाग
चचेरे भाई से अपनी चूत चुदवा ली मैंने
में आपने पढ़ा कि मेरे भाई को मुझसे अपना लंड चुसवा कर मजा आया. लेकिन इससे मैं भी गर्म हो गई. अब मेरी चूत लंड के लिए तड़प रही थी.
मैंने अपने भाई को मेरी चूत में लंड पेलने को कहा.
और मैं चचेरे भाई से चुद गयी.
अब आगे Xxx सिस्टर लव स्टोरी:
एक दिन निशा का फ़ोन आया।
मैं खुश हो गई कि लगता है गाड़ी मिलने वाली है।
मैंने थोड़ी देर इधर-उधर की बात की।
फिर मैंने कहा, “और बता, तेरा भाई कैसे है अब?”
निशा ने बोला, “अच्छा है! पर तेरा दीवाना हो गया है! रोज़ पूछता है, सुहानी दीदी कब आएँगी!”
मैं भी कह देती हूँ, “अभी व्यस्त है! जब टाइम होगा, तब आएँगी! तू आ जा ना, एक दिन टाइम निकालकर!”
मैंने कहा, “अरे यार, अभी थोड़ा काम ज़्यादा है, तो मुमकिन नहीं है! और वैसे भी तेरा भाई तो चोदने के लिए उतावला है, इसलिए पूछ रहा है! मुझे सब पता है!”
उसने कहा, “तो चुदवा ले ना एक बार और! कौन-सा तेरी चूत घिस जाएगी!”
मैंने कहा, “अरे, अब नहीं यार! एक बार हो गया, बहुत है!”
वह बोली, “चल, नाटक मत कर! गाड़ी की दूसरी किश्त समझकर चुदवा ले! अब इतनी अच्छी गाड़ी की 2-3 किश्तें तो भरनी पड़ती हैं! वरना देख ले, पड़ोस वाले अंकल भी बोल रहे थे, ये गाड़ी हमें दे देना, जब तुम लोग नई ले लो तो! सही पैसे दे देंगे!”
मुझे गाड़ी हाथ से जाती दिखी।
मुझे बहुत दुख-सा हुआ।
मैंने तुरंत कहा, “चल, मर मत! चुदवा लूँगी! पर ऐसे कब तक चलेगा यार? कभी ना कभी तो बंद करना पड़ेगा ना!”
निशा बोली, “चल, एक बार और चुदवा ले! फिर मैं तुम दोनों को पकड़ लूँगी, ऐसा करते हुए! पापा को बताने की धमकी देकर बंद करवा दूँगी! पर गाड़ी मिलने तक तो चुदवा!”
मैंने कहा, “ठीक है! जिस दिन गाड़ी की चाबी मेरे हाथ में आई, उसी दिन के बाद नहीं चुदवाऊँगी तेरे भाई से!”
उसने कहा, “चल, ठीक है! तो फिर आ जा घर!”
मैंने कहा, “एक काम कर! तेरे घर में चाचा-चाची का डर रहता है। उसे कुछ सामान लेकर मेरे यहाँ भेज दे, शनिवार को! उसकी सारी ख़्वाहिश पूरी करके अगले दिन भेज दूँगी!”
निशा बोली, “चल, ये भी सही है! ऐसा ही करते हैं!”
बस फिर कुछ दिन में शनिवार भी आ गया।
निशा का फ़ोन आया, “सुहानी, मम्मी ने तेरा पसंद का खाना बनाया है! आज घर आ जाना!”
मैंने कहा, “नहीं यार, आज नहीं आ पाऊँगी! ऑफिस से लेट हो जाऊँगी!”
अब क्योंकि उसका भाई पास में ही था, तो निशा बोली, “चल, कोई नहीं! अमर को भेज देती हूँ, खाना लेकर!”
मैंने कहा, “हाँ, ऐसा कर ले! मैं कमरे पर ही मिलूँगी!”
शाम को मैं कमरे पर पहुँची।
आराम से हाथ-मुँह धोकर तैयार हो गई।
करीब 8:30 बजे अमर आया।
वो बोला, “दीदी, आपके लिए खाना भिजवाया है, निशा दीदी ने!”
मैंने उसे अंदर बुलाया।
उसने खाना मेज पर रख दिया।
फिर मैंने एक्टिंग करते हुए कहा, “ठीक है, अमर! अब तुम जाओ, देर हो रही होगी!”
अमर बोला, “दीदी, एक बार फिर से कर लो ना मेरे साथ!”
मैंने कहा, “क्या कर लूँ?”
उसने कहा, “सेक्स, दीदी! एक बार और करते हैं ना, प्लीज़! आप बहुत अच्छी लगने लगी हो!”
मैंने थोड़े-से नखरे करके कहा, “नहीं यार! बार-बार नहीं कर सकती! वैसे भी तुम मेरे बॉयफ़्रेंड नहीं हो, चचेरे भाई हो!”
वो और मिन्नतें करने लगा, गिड़गिड़ाने लगा।
आखिरकार मैंने उसकी बात मानते हुए कहा, “चलो, ठीक है! पर अब आखिरी बार! वादा करो!”
उसने कहा, “ठीक है, दीदी, आखिरी बार!”
फिर मैंने उसको कहा, “अपने घर पर फ़ोन करके बोल दे कि स्कूटी स्टार्ट नहीं हो रही, तो यहीं रुक रहा हूँ! कल दिन में ठीक कराकर आ जाऊँगा!”
अमर खुश हो गया।
उसने अपने घर पर फ़ोन करके ऐसा ही कहा।
मैंने भी फ़ोन लेकर कहा, “निशा, कल दिन में आराम से आ जाएगा! तुम लोग चिंता मत करो!”
निशा ने कहा, “हाँ साली, जा, चुदवा ले पूरी रात!”
मैंने कहा, “हाँ, ठीक है! चल, बाय!”
मैंने फ़ोन काट दिया।
फिर तो बस पूरी रात का मामला सेट था।
अमर ने कहा, “दीदी, उसी दिन की तरह तैयार हो जाओ ना! आप सेक्सी अवतार में बहुत अच्छी लगती हो!”
मैंने कहा, “क्यों, इतनी मेहनत करवा रहे हो?”
उसने कहा, “प्लीज़ दीदी, अपने छोटे भाई के लिए छोटे कपड़े नहीं पहन सकती?”
मैंने कहा, “हाँ, ताकि फिर तू उन कपड़ों को उतार दे!”
उसने कहा, “प्लीज़ दीदी!”
मैंने कहा, “चल, ठीक है! मैं तैयार होकर आती हूँ!”
मैंने अलमारी में से एक सेक्सी ड्रेस निकाली।
पहनकर अच्छे से साज-धजकर तैयार हो गई।
मैंने बोला, “अब खाना खा ले!”
उसने कहा, “हाँ दीदी, अब हम डेट की तरह खाएँगे!”
फिर उसने कमरे की लाइट थोड़ी मंदी कर दी।
मोमबत्तियाँ जला दीं, जैसे कैंडल लाइट डिनर करने किसी रेस्तराँ में आए हों।
फिर मैंने और उसने मिलकर खाना लगाया।
धीरे-धीरे खाने का लुत्फ़ लेते हुए डिनर करने लगे।
इस बीच हम थोड़ी इधर-उधर की बातें कर रहे थे।
वो मेरे ऑफिस के बारे में पूछा।
मैंने थोड़ा पढ़ाई के बारे में वगैरह।
फिर मैंने पूछा, “अब भी तुम्हें लड़के अच्छे लगते हैं या लड़कियों में थोड़ी-बहुत दिलचस्पी आई है?”
उसने मुस्कुराते हुए कहा, “दीदी, पता नहीं मुझे क्या हो गया था! मुझे लड़के अच्छे लगने लगे थे। पर फिर जब आपने मुझे लड़की के जिस्म को भोगने का मौका दिया, तो धीरे-धीरे मेरा ध्यान लड़कों से बिल्कुल हट-सा गया है! ये मानो, अब तो मैं बिल्कुल भी लड़कों की तरफ़ आकर्षित नहीं होता!”
मैंने कहा, “और लड़कियों की तरफ़?”
उसने कहा, “उनकी तरफ़ तो हमेशा रहने लगा हूँ!”
मैंने कहा, “कहाँ-कहाँ देखकर आकर्षित रहने लगे हो?”
उसने आगे बताया, “उनका सुंदर-सा चेहरा, उनकी आँखें, उनके होंठ, गर्दन, बूब्स, पेट, कमर, चूत, टाँगें, पैर, सब कुछ!”
मैंने कहा, “वाह, पूरा जिस्म ही गिना दिया!”
वो हँसने लगा।
वो बोला, “हाँ दीदी! और सब लड़कियों में मुझे आपकी ही झलक दिखाई देती है! उस दिन आपके साथ बिताए एक-एक पल को याद करके मेरा दिल धक-धक करने लगता है और लंड खड़ा हो जाता है!”
मैंने कहा, “चलो, अच्छा है! मतलब मैं तुम्हें सही रास्ते पर ले आई!”
उसने कहा, “जी बिल्कुल, दीदी! और आगे भी आप ही लेके जाओगी!”
वो बोला, “दीदी, आप ही हमेशा पहला प्यार रहोगी! भले ही हमारे बीच ये सब ख़त्म हो जाए और कुछ साल बाद बातचीत भी कम हो जाए!”
मैंने कहा, “हाँ यार, ये तो होना ही है!”
हम लोग धीरे-धीरे खाना खाते जा रहे थे।
बातें करते जा रहे थे।
फिर खाना खाकर हम थोड़ा आराम करने लगे।
टीवी देखते रहे।
करीब आधे घंटे बाद वो फ़्रिज में आइसक्रीम ले आया।
हम दोनों आइसक्रीम खाने लगे।
आइसक्रीम पिघलने की वजह से मेरे होंठों से टपकने लगी थी।
मैं साफ़ करने को हुई तो उसने रोका, वो बोला, “लाओ, मैं कर देता हूँ!”
वह अपने होंठ मेरे होंठों पर लाकर जीभ से चाटकर खा गया।
मैं थोड़ा आश्चर्य से आँखें फ़ाड़कर देख रही थी।
पर इसके साथ मुझे मज़ा भी आया था।
फिर मैंने दोबारा शरारत भरे अंदाज़ में आइसक्रीम खाते हुए अपनी छाती पर गिरा दी।
अमर मुस्कुराने लगा। वो बोला, “ओह हो, अब फिर साफ़ करनी पड़ेगी!”
वो मेरे पास आकर मेरे गले के नीचे छाती से चाटकर साफ़ कर दी।
फिर मैंने थोड़ा और नीचे, ब्रा के ऊपर गिरा दी।
अमर ने फिर ब्रा को ऊपर से ही चूसकर साफ़ करके खा गया।
अब हम दोनों मज़े लेते हुए खा रहे थे।
मैंने अब अपने होंठों पर आइसक्रीम लगा ली।
उसे देखने लगी।
वो तुरंत मेरे होंठों पर लपका और चूसने लगा।
ऐसे ही हमारा चुंबन शुरू हो गया।
हम मीठे स्वाद के साथ किस कर रहे थे।
फिर एक-दो मिनट तक किस करके हटे।
आइसक्रीम और पिघलने लगी थी।
अब अमर ने अपनी शर्ट और बनियान उतार दी।
आइसक्रीम अपनी छाती पर गिरा ली।
मैंने उसे एक स्माइल दी।
तुरंत उसके ऊपर कूद पड़ी।
नीचे गिराकर आइसक्रीम चाट-चाटकर खाने लगी, उसकी छाती से।
उसके ऊपर पड़े हुए मैं उसके खड़े लंड को महसूस कर सकती थी।
ऐसे ही पड़े-पड़े उसने अपनी पैंट और कच्छा भी उतार दिया।
मैं आइसक्रीम चाटकर हटी।
उसने अपने लंड पर ठंडी-ठंडी आइसक्रीम लगा ली।
मुझे देखते हुए मुस्कुराने लगा।
आँखें उचकाकर इशारा करने लगा।
मैंने भी कहा, “अच्छा, ऐसी बात है!”
मैं तुरंत उसके लंड पर लपकी।
मुँह में ले गई।
अब उसके लंड का स्वाद सख्त, मीठा और ठंडा था।
हम दोनों को ही मज़े आ रहे थे।
मैं लंड चूस रही थी।
वो बीच-बीच में रुक-रुककर आइसक्रीम लगा देता था।
आइसक्रीम भले ही ठंडी थी।
पर हम दोनों जवानी के जोश में गरम होते जा रहे थे।
दोबारा एक सेक्स की तरफ़ बढ़ रहे थे।
करीब 3-4 मिनट तक मैंने वो मीठा लंड चूसा।
अब वो पूरा खड़ा था Xxx सिस्टर लव के लिए।
मैंने खड़ी होकर हाथ से होंठ पोंछे, आँखें मटकाकर उससे पूछा, “कैसे लगा?”
वो बोला, “मज़ा आ गया, दीदी!”
मैंने कहा, “चल, फिर आगे के मज़े भी शुरू करते हैं!”
फिर हम एक-दूसरे में बुरी तरह घुस गए।
ज़ोर से चुम्मा-चाटी करने लगे, एक-दूसरे को।
ऐसे ही एक-एक करके वो मेरे कपड़े भी उतारता चला गया।
अब हम दोनों बिल्कुल नंगे थे।
थोड़ी देर रुककर साँस ली।
अमर बोला, “दीदी, इस आखिरी बार को यादगार बनाते हैं! शायद दोबारा कभी हमें ये मौका नहीं मिलेगा!”
मैंने हामी में सिर हिलाया।
फिर वो मेरे पास आ गया।
मुझे दीवार से सटाकर आगे से होंठों को जबरदस्त तरीके से चूमने लगा।
हम दोनों एक-दूसरे को ऐसे ही किस करते रहे।
इसके साथ ही हमारे हाथ एक-दूसरे के जिस्म पर फिरा रहे थे, सहला रहे थे।
फिर मैंने घूमकर उसे दीवार और अपने बीच ले लिया।
धीरे-धीरे होंठों से नीचे आते हुए चूमने लगी।
एक बार फिर मैंने उसका लंड थोड़ी देर चूसा।
फिर हाथ में पकड़ते हुए खड़ी हो गई, बेड के पास ले आई।
बेड के पास लाकर मैंने बेड के किनारे घोड़ी बनते हुए अपनी चूत उसके सामने खोल दी।
मैंने कहा, “ले मेरी जान, आज रात ये तेरे हवाले! ऐसी चुदाई करना कि याद रहे ये आखिरी चुदाई!”
उसने देखा।
तुरंत पीछे से मेरी गांड और चूत को बैठकर चाटने लगा, चिकनी करने लगा।
मुझे, “स्सी… स्सी…” करते हुए बहुत मज़ा आने लगा।
थोड़ी देर में मैंने कहा, “चाटके ही पानी निकालेगा क्या? लंड डाल, बहनचोद!”
वो बोला, “हाँ दीदी, आज तो मैं बहनचोद बनके ही रहूँगा और आपको खूब चोदूँगा!”
फिर उसने अपना लंड मेरी चूत पर लगाया।
मेरे चूतड़ों से कसकर ऐसा पकड़ा कि नाखून चुभने लगे।
मैंने ज़ोर की, “स्सी…” करी।
उसने एक झटके में पूरा लंड अंदर उतार दिया।
मुझे बहुत मज़ा आया।
मैंने ‘आह…’ करी।
फिर तो उसने मज़े में पट्ट-पट्ट आगे-पीछे हिलाकर चोदना शुरू कर दिया।
वो और मैं दोनों ही ‘हम्म… हम्म… स्सी… सी… स्सी…’ करते हुए चुदाई का मज़ा लेने लगे।
कमरे में ज़ोर-ज़ोर की पट्ट-पट्ट की आवाज़ भी
कमरे में फिर पट्ट-पट्ट की आवाज़ आने लगी।
हम दोनों “हम्म… हम्म… स्सी… उम्महह… आहह…” करते हुए चुदाई में डूबे थे।
उसने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी थी।
मैं भी चरम आनंद की तरफ बढ़ रही थी।
मैंने उसे अपनी बाहों में जकड़ लिया था।
वो मेरे ऊपर लेटा हुआ, ऊपर-नीचे हो-होकर चोद रहा था।
धीरे-धीरे मेरा शरीर काँपने लगा।
मैंने कहा, “आहह… आहह… आई… स्सी… और तेज़… और तेज़… बहनचोद, और तेज़!”
उसने अपनी पूरी स्पीड से चुदाई जारी रखी।
वो बोलने लगा, “आहह… दीदी… आहह… आहह…”
इधर मैं, “आह… अमर… आह… आहह… अमर… आ… आ… आ… अमर!”
ज़ोर की “आहह…” के साथ फच्च… फच्च… फच्च… की आवाज़ के साथ चुदते हुए मैं झड़ गई।
अब चुदाई में पच्च-पच्च की आवाज़ भी आने लगी थी।
अगले कुछ पलों में वो भी 4-5 झटके देकर मेरी चूत में ही झड़ गया।
वो मेरे ऊपर ही गिर गया।
हम दोनों ज़ोर-ज़ोर से हाँफ रहे थे।
धीरे-धीरे वो मुझसे अलग होकर मेरे बगल में लेट गया।
पता नहीं कब हम दोनों ऐसे ही सो गए।
फिर सुबह हम दोनों उठे।
मैंने अपने कपड़े समेटे और उसे भी उठा दिया।
मैंने कहा, “उठ भाई, घर नहीं जाना क्या!”
फिर हम उठे, नहाए, धोए और चाय-नाश्ता किया।
मैं ऑफिस निकल गई और वो अपने घर।
ऐसे ही कुछ दिन ऑफिस के काम में व्यस्त रही।
वक्त कब निकल गया, पता ही नहीं चला।
करीब 2 हफ्ते बाद निशा का फोन आया।
उसने कहा, “सुहानी, आ जा घर, शाम को! तेरा पसंदीदा खाना बन रहा है!”
मैंने कहा, “ठीक है!”
मैं अपने ऑफिस के काम में लग गई।
शाम को ऑटो से मैं उनके घर पहुंची।
घर पर बस निशा थी।
मैंने हाथ-मुँह धोया।
हम दोनों बात करने लगे और खाना बनाने की तैयारी करने लगे।
मैंने पूछा, “चाचा-चाची कहाँ हैं?”
उसने कहा, “बाहर गए हैं और अमर ट्यूशन गया है।”
फिर हम इधर-उधर की बातें करते रहे।
तभी गेट पर गाड़ी की आवाज़ हुई।
हम दोनों गेट खोलने बाहर आ गए।
अमर होंडा सिटी लेकर गेट पर खड़ा था।
मैंने कहा, “ले आ अंदर!”
पर उसने गाड़ी अंदर नहीं लाई और सड़क पर साइड में लगा दी।
उसके पीछे चाचा-चाची अपनी नई स्कॉर्पियो गाड़ी लेकर अंदर आने लगे।
मैं और निशा खुशी से उछल पड़े।
चाचा जी ने नई गाड़ी अंदर लगा दी।
मैंने उन सब को बधाई दी।
फिर अमर मेरे पास आया।
चाचा जी ने उससे चाबी लेकर मेरी तरफ बढ़ते हुए कहा, “थैंक यू बेटा! तुमने अमर को सही रास्ते पर लाने में बहुत मदद की। ये हमारी तरफ से एक थैंक यू गिफ्ट। आज से ये होंडा सिटी गाड़ी तुम्हारी!”
मेरा तो मानो सपना पूरा हो गया।
कुछ पल तो मैं जम सी गई।
निशा ने मुझे हिलाया और बोली, “सुहानी-सुहानी, मुबारक हो! आज से गाड़ी तेरी!”
मेरी आँखों में खुशी के आँसू आने को हो गए।
मैंने कहा, “थैंक यू!”
मैंने सबको गले लगाया।
फिर मैं और निशा होंडा सिटी की तरफ बढ़े और घूमने निकल गए।
रास्ते में निशा ने कहा, “थैंक्स यार! तूने जो मेरे लिए किया, वो कोई और नहीं करती!”
मैंने कहा, “मतलब, तेरे भाई से चुदवाना?”
वो बोली, “हाँ!”
हम दोनों खुलकर हँसने लगे।
हम खूब घूमे-फिरे और जब मन भर गया, तो घर आ गए।
रात को खाना खाया।
फिर मैं अपनी होंडा सिटी में बैठकर अपने कमरे पर चली गई।
मैं अपनी इस जीत पर बहुत खुश थी।
तो दोस्तो, आपको कैसी लगी ये Xxx सिस्टर लव स्टोरी?
मेल में ज़रूर बताइएगा!
जल्दी ही मिलेंगे अगली कहानी में।
तब तक मज़े लेते रहिए और हाँ, देते भी रहिए!
आपकी प्यारी,
सुहानी चौधरी
suhani.kumari.cutie@gmail.com