मेरा नाम सुहानी चौधरी है और मैं दिल्ली में रहकर एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करती हूँ।
जबकि मेरा परिवार उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले से है।
मेरी उम्र 25 साल है और दिखने में काफ़ी सुंदर, प्यारी और आकर्षक हूँ।
ऊपर से दिल्ली के फ़ैशन के हिसाब से मेरा हेयरस्टाइल, रहन-सहन, कपड़े और उस पर मेरा स्वभाव भी बहुत दोस्ताना और प्यार भरा है।
इससे मैं सबकी पसंद बन जाती हूँ।
मैं यहाँ दिल्ली में किराए पर अकेली रहती हूँ।
हालाँकि मेरे काफ़ी रिश्तेदार भी दिल्ली में रहते हैं, तो ऐसी कोई खास दिक्कत नहीं होती।
मैं रविवार वगैरह को उनसे मिलने भी चली जाती हूँ।
सबसे ज़्यादा मैं अपने चाचा जी के यहाँ जाती हूँ, जो मेरे घर से ज़्यादा दूर नहीं रहते।
वहाँ चाचा जी अपने परिवार के साथ रहते हैं।
उनकी लड़की निशा, जो मेरी हमउम्र है, वहाँ रहती है।
उससे मेरी बचपन की दोस्ती है।
क्योंकि हम एक-दूसरे के घर काफ़ी आते-जाते रहते हैं और साथ-साथ बड़े हुए हैं।
इसलिए हम एक-दूसरे से खुलकर बात करते हैं।
इसके अलावा उसका छोटा भाई अमर है, जो 18 साल का है और कक्षा 12 में पढ़ता है।
वह पढ़ाई में भी काफ़ी होशियार है।
एक दिन की बात है, मैं उसके घर गई हुई थी।
निशा थोड़ी टेंशन में लग रही थी।
मैंने पूछा, “क्या हुआ?”
वह बोली, “कुछ नहीं यार, अमर की पढ़ाई को लेकर टेंशन है घर में! उसका ध्यान आजकल पढ़ाई में नहीं है और क्लास टेस्ट में नंबर भी बहुत कम आए हैं!”
मैंने कहा, “तो ट्यूशन लगवा दो, बारहवीं है निशा, आगे पूरा भविष्य निर्भर है!”
निशा बोली, “उससे कुछ नहीं होगा यार, वो जवानी के जोश में बहक रहा है!”
मैंने कहा, “मतलब?”
उसने कहा, “यार, वो कम्प्यूटर पर ब्लू फ़िल्में देखने लगा है और शायद मुठ भी मारने लगा है! पापा भी बहुत गुस्सा कर रहे थे और परसों तो पिटाई भी की थी। रात में उसने खाना भी नहीं खाया!”
मैंने कहा, “तो उसे प्यार से समझा के देख लेते!”
वह बोली, “यार, तू ही समझा के देख! वैसे भी वो तेरी बहुत बात मानता है। बचपन से तुझसे अच्छे से बिना शर्माए बात कर लेता है। शायद तेरे कहने से सुधार जाए!”
मैंने कहा, “चल, मैं कोशिश करूँगी!”
फिर कुछ देर बाद मैं उसके कमरे में गई।
वो थोड़ा सामान्य-सा हो गया था।
मैंने उससे थोड़ी इधर-उधर की बात करके पढ़ाई की बात की।
मैं और वो अक्सर अच्छे दोस्तों की तरह बात करते थे।
मैंने पूछा, “क्या हुआ? पापा ने क्यों मारा?”
उसने कहा, “वो दीदी, पापा मुझे गलत समझ रहे हैं! मेरे दोस्त ने दी थी वो गंदी फ़िल्म। मैंने तो ऐसे ही देख ली, पर फिर अच्छी लगने लगी!”
मैंने कहा, “देखो अमर, ये उम्र इस सब में पड़ने की नहीं है, पढ़ने-लिखने की उम्र है! इसी उम्र में बिगड़ते हैं और इसी उम्र में बनते हैं। ये सब फ़िल्में बच्चों के लिए नहीं होतीं। जब बड़े हो जाओगे, तो देख लिया करना, कोई नहीं रोकेगा!”
उसने बोला, “दीदी, मैंने बहुत कोशिश की खुद को रोकने की, पर मन हो जाता है बार-बार!”
मैंने कहा, “मन को काबू करना सीखो यार! देखो, तुम होशियार लड़के हो, इस सब में बेवकूफ़ मत बनो! रुको, मैं डिलीट कर देती हूँ!”
वो मिन्नतें करने लगा, “प्लीज़ दीदी, डिलीट मत करो! मैं नहीं देखूँगा!”
मैंने कहा, “ठीक है, चलो डिलीट नहीं कर रही, पर लॉक कर देती हूँ! जब देखना हो, तो पासवर्ड दे दूँगी, पर पहले पढ़ाई!”
वो थोड़ा निराश तो हो गया, पर मान गया।
मैंने उसके कम्प्यूटर को खोलकर पूछा, “कहाँ रखी हैं?”
फिर मैं उस फ़ोल्डर में पहुँच गई।
मैंने कहा, “जाओ, मेरे लिए पानी लेके आओ!”
वो पानी लेने गया, तो मैंने देखा कि क्या-क्या पड़ा है।
2-3 तो सामान्य लड़के-लड़की की फ़िल्में थीं, पर ज़्यादातर लड़कों-लड़कों की, यानी गे, मतलब समलैंगिक फ़िल्में थीं।
यह देखकर मैं हैरान रह गई।
अब मुझे समझ आया कि वो कितनी गलत संगत में जा रहा है।
उसके आने पर मैंने पूछा, “तुम लड़कों-लड़कों की क्यों देखते हो?”
उसने कहा, “दीदी, मुझे यही अच्छी लगती हैं!”
मैंने कहा, “ये सब बकवास है, गलत है! ऐसी मत देखना, वरना पापा बहुत मारेंगे!”
उसने बोला, “पर दीदी, मुझे लड़के के साथ देखने में मज़ा आता है!”
मैंने कहा, “अब से सब बंद और सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान दो! मैंने लॉक कर दी है और जब एग्ज़ाम हो जाएँगे, तब खोलूँगी!”
उसने कुछ नहीं कहा।
मैं पानी पीकर उसके कमरे से चली गई।
ये बात जाकर मैंने निशा को बताई।
वो भी हक्की-बक्की रह गई।
मैंने कहा, “ज़माना बहुत ख़राब है! जीने नहीं देगा किसी को, अगर पता लग गया तो!”
उसने पूछा, “तो इसका क्या समाधान है?”
मैंने कहा, “पता नहीं यार! पर अभी उसके आकर्षण की उम्र शुरू हुई है। उसे लड़कियों से ज़्यादा घुलने-मिलने दो, वरना लड़कों-लड़कों में रहकर उसका रुझान लड़कों में ना चला जाए!”
निशा भी बहुत परेशान हो गई।
वो बोली, “इसकी तो कोई गर्लफ़्रेंड भी नहीं है, वरना खुली छूट दे देते!”
मैंने कहा, “बनवा दे कोई! अपने घर पर बता दे, ताकि वो ज़्यादा रोक-टोक ना लगाए लड़कियों से मिलने-जुलने पर!”
फिर कुछ देर और रुककर और खाना खाकर मैं अपने घर आ गई।
इसके बाद कुछ दिन मैं अपने ऑफिस की दिनचर्या में व्यस्त रही और इस सब के बारे में नहीं सोचा।
फिर रविवार को मैं फिर उनके यहाँ गई।
मैंने निशा से अमर के बारे में बात की।
वो बोली, “यार, वो लड़कियों से शरमाता है! पता नहीं कैसे गर्लफ़्रेंड बनेगी इसकी! सुहानी, कोई रास्ता बता!”
मैंने कहा, “बताया तो! कोई लड़की से दोस्ती करवा दे, जिसके साथ वो सहज महसूस करे और उससे आकर्षित हो सके! वरना गलत ट्रेन तो वो पकड़ ही रहा है!”
वह बोली, “यार, ऐसी कोई लड़की दोस्त नहीं है उसकी! मेरी मान, तो तू ही उससे दोस्ती कर ले! थोड़ा साथ रहेगी, तो शायद कुछ असर हो!”
मैंने कहा, “मैं कैसे यार? मैं उसकी बड़ी बहन हूँ! चचेरी ही सही, पर हूँ तो बहन ही!”
निशा बोली, “मैं कौन-सा शादी करने को बोल रही हूँ यार! बस थोड़ा लड़कियों के प्रति आकर्षण जगाना है!”
मैंने कहा, “पागल मत बन! किसी को पता लग गया, तो बहुत बदनामी होगी!”
उसने कहा, “कुछ नहीं होगा यार! पर अगर वो किसी लड़के के साथ कुछ उल्टा-सीधा करते या करवाते पकड़ा गया, तो और ज़्यादा बदनामी होगी!”
वो मेरे सामने मिन्नतें करने लगी।
मैंने कहा, “तू मरवाएगी मुझे!”
निशा ने कहा, “अच्छा साली, तब तो गाँव में खुलकर चुदवाकर आई थी उससे! वो भी तो बुआ का लड़का था!”
मैंने थोड़ा चिढ़ते हुए कहा, “अरे, तो तुझे इसलिए थोड़े ही बताया था कि तू मुझे अपने भाई से भी चुदवा दे!”
वो बोली, “तो मान जा ना! किसी को कुछ पता नहीं चलेगा!”
क्योंकि निशा और मैं बचपन से अच्छी सहेलियाँ थीं, तो एक-दूसरे की बात बहुत मानती थीं।
हम एक-दूसरे की बहुत मदद भी करती थीं।
मैंने कहा, “चल, गिड़गिड़ा मत! मैं कोशिश करूँगी कुछ!”
फिर मैंने पूछा, “तो बता, क्या प्लान है?”
उसने आगे बताया, “तू अब हर रविवार यहाँ आया कर! कुछ न कुछ बहाने करके उसके कमरे में जाया कर, उसके पास बैठा कर! उसकी शर्म खुलेगी!”
मैंने कहा, “अच्छा, फिर?”
वह बोली, “चल, आज ट्रायल करते हैं! तू इस कमरे में कपड़े बदलने की एक्टिंग कर और मैं किसी बहाने से उसको यहाँ भेजती हूँ। फिर छिपकर उसकी प्रतिक्रिया देखूँगी, तुझे ऐसे कपड़े बदलते देखकर!”
मैंने कहा, “वाह, पहले दिन ही अपने भाई के सामने नंगी कर दे मुझे!”
उसने कहा, “कुछ नहीं हो रहा! चल, ड्रामा मत कर, शुरू करते हैं उसका इलाज!”
मैंने कहा, “चल, ठीक है!”
फिर वो चली गई।
मैंने खिड़की के पर्दे थोड़े खोलकर अपनी टी-शर्ट उतार दी और ब्रा में बैठ गई।
तभी निशा का मैसेज आया कि वो तेरे कमरे के पास से गुज़रने वाला है, रसोई में जाने के लिए।
मैं तुरंत शीशे के सामने खड़ी हो गई और बाल बनाने की एक्टिंग करने लगी।
इस तरह से कि मैं शीशे की परछाई में खिड़की को देख सकूँ।
कुछ ही पलों में मैंने देखा कि वो खिड़की के पास से होता हुआ सीधा निकल गया।
मैंने सोचा, प्लान फ़ेल हो गया।
पर फिर पर्दे पर उसकी परछाई-सी दिखी।
वो वापस खिड़की की आड़ में खड़ा हो गया और धीरे-धीरे मुझे इस हालत में देखने लगा।
ऐसे ही 2-3 मिनट तक मैं बाल बनाती रही।
फिर टी-शर्ट उठाने के लिए पलटी, तो वो तुरंत नीचे हो गया।
मैंने टी-शर्ट पहन ली और वो भी चला गया।
थोड़ी देर बाद निशा कमरे में आ गई।
मैंने पूछा, “तो क्या रहा मैडम?”
वो बोली, “पहले तो बस नज़र डालकर सीधा निकल गया! पर फिर घूमकर आया और छुपकर देख रहा था!”
मैंने कहा, “बस देख रहा था?”
उसने कहा, “हाँ!”
मैंने कहा, “मतलब, अभी और हॉट सीन दिखाने पड़ेंगे अपने!”
निशा बोली, “हाँ, उसे मर्द बनाना है, तो इतना तो करना पड़ेगा!”
फिर निशा बोली, “तू कुछ दिन यहीं से ऑफिस कर ले! मैं मम्मी-पापा को मना लूँगी, कोई बहाना मारकर!”
मैंने सोचा, चलो, कुछ दिन घर के काम से, खाना बनाने से छुटकारा मिलेगा।
तो मैं भी राज़ी हो गई।
बस फिर क्या, हम दोनों मेरे कमरे पर गए।
ज़रूरी सामान और कपड़े वगैरह ले आए।
मैं निशा के कमरे में ही शिफ़्ट हो गई।
सुबह मैं ऑफिस निकल जाती और शाम को घर आ जाती।
इसी बीच मैं अमर के पास भी बैठती थी कभी-कभार, ताकि उसके मन का हाल जान सकूँ।
इसके साथ ही मैं उसको छूती थी और चिपककर बैठ जाती थी।
शनिवार को निशा ने कहा, “एक काम कर, आज तू फिर उसे रिझाने की कोशिश कर!”
मैंने पूछा, “कैसे?”
उसने कहा, “मैं इस बेड पर सोती रहूँगी और तू बाथरूम में नंगी नहाती रहना! अमर जब अपने फ़ोन का चार्जर लेने आएगा, तो शायद तुझे नहाते हुए देखने की कोशिश करे!”
मैंने कहा, “वाह, क्या प्लान है! तू पक्का मुझे अपने भाई से चुदवाएगी एक दिन!”
हम दोनों खिलखिलाकर हँसने लगे।
अगली सुबह मैं उठी और प्लान के हिसाब से बाथरूम में नहाने घुस गई।
मैंने जानबूझकर गेट हल्का खुला छोड़ दिया।
जैसा कि उम्मीद थी, अमर भी अपने फ़ोन का चार्जर लेने कमरे में आया।
अपनी बहन को सोता हुआ देखकर उसने हिम्मत करके बाथरूम की तरफ़ बढ़ा।
निशा उसे लेटे-लेटे ही देख रही थी।
मैं शावर के नीचे पूरी नंगी होकर घूमते हुए, आँखें बंद करके नहा रही थी।
मुझे पता था कि अमर छुपकर देख रहा है।
मैंने भी अपने खूबसूरत जिस्म की नुमाइश उसके आगे करना जारी रखा।
फिर मैंने नहाना ख़त्म करके कपड़े पहने और बाहर आ गई।
अमर दबे पाँव जा चुका था।
मैंने आते ही निशा से पूछा, “तो क्या रहा?”
वो बोली, “मेरा भाई मर्द बन रहा है धीरे-धीरे!”
मैंने कहा, “कैसे?”
उसने कहा, “तुझे आँखें फ़ाड़-फ़ाड़कर नहाते देख रहा था और अपने लंड को सहला रहा था! मतलब अब भावनाएँ उठने लगी हैं लड़कियों का जिस्म देखकर!”
मैंने कहा, “चलो, अच्छा है! मतलब मेरा काम पूरा हो गया ना?”
उसने कहा, “अभी कहाँ!”
मैंने कहा, “तो फिर?”
निशा ने कहा, “यार, थोड़े और आगे जाते हैं! वरना वो वापस वहीँ पहुँच जाएगा!”
मैंने पूछा, “मतलब?”
उसने कहा, “मुझे लगता है अब उसे औरत के जिस्म का सुख भोगना चाहिए, ताकि दोबारा मन इन बेकार की बातों में ना जाए!”
मैंने कहा, “मतलब, सेक्स करना चाहिए उसे?”
उसने बोला, “हाँ! अब उसे सेक्स दिलवाना चाहिए और तुझसे बेहतर और कौन हो सकती है उसकी पहली चुदाई के लिए!”
मैंने कहा, “तेरा ये इलाज ज़्यादा दूर नहीं जा रहा? मैं अपने चचेरे भाई से चुदवा लूँ क्या, तेरे आइडिया के चक्कर में?”
वह बोली, “प्लीज़ यार, एक तू ही तो है उसकी ज़िंदगी में! कोई गर्लफ़्रेंड तो है नहीं, तो एक रात के लिए तू ही बन जा उसकी गर्लफ़्रेंड!”
मैंने कुछ सोचते हुए कहा, “इसमें मेरा क्या फ़ायदा होगा?”
उसने कहा, “रिश्तेदारी में फ़ायदा देखती है, चुड़ैल!”
मैंने कहा, “अच्छा साली, तू रिश्तेदारी में मुझे चुदवाने को बोल रही है और मैं फ़ायदा भी ना देखूँ?”
वह बोली, “चल, बोल क्या चाहिए!”
मैंने कहा, “अगर तुझे अपने हिसाब से काम करवाना है, तो कुछ महँगी चीज़ तो बनती है इस एहसान के बदले!”
मेरे मन में था कि निशा से उसकी कोई महँगी-सी ड्रेस या सामान माँग लूँगी।
निशा बोली, “चल साली, ऐसा ऑफर देती हूँ कि तू तुरंत हाँ बोल देगी!”
मैंने बोला, “क्या?”
निशा बोली, “देख, हम लोग अगले महीने नई गाड़ी खरीदने वाले हैं। पर अगर तूने मेरा काम कर दिया, तो पुरानी होंडा सिटी गाड़ी तुझे दिलवा दूँगी, फ़्री में!”
मैंने कहा, “चल, पागल मत बना! सेकंड हैंड में भी वो गाड़ी 5-6 लाख की होगी!”
निशा बोली, “तू क्यों चिंता कर रही है? पैसे की कमी थोड़े ही है हमारे पास! पापा बोल रहे थे, किसी रिश्तेदार को दे देंगे, कम-से-कम घर में तो रहेगी। तो वो रिश्तेदार तू बन सकती है!”
मैंने कहा, “सोच ले, बाद में मुकर मत जाना!”
वह बोली, “मेरे भाई को मर्द बना! एक महीने तक खूब चुदवा, तो गाड़ी की किश्तें पूरी हो जाएँगी तेरी चूत से ही!”
ऑफ़र बहुत बढ़िया था।
उनकी गाड़ी बहुत अच्छी थी, तो मैं मना नहीं कर पाई और हाँ कर दी।
मैंने कहा, “अब तू देखती जा! सुहानी तो मुरदों के लंड में जान फूँक दे, वो तो फिर भी जवानी की दहलीज़ पर है!”
मैंने 2 दिन की छुट्टी डाल दी और अपनी पहली किश्त की तैयारी में लग गई।
यह कहानी 4 भागों में होगी.
न्यू गे ब्रदर स्टोरी के हर भाग पर आप कमेंट्स और मेल में अपने विचार बताएं.
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